नई दिल्ली- जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने सोमवार रात राष्ट्र के नाम हिंदी में संदेश दिया, तो देश की निगाहें उनके शब्दों पर टिकी थीं। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठे नेता से उम्मीद थी कि वह पहलगाम हमले, भारत-पाक तनाव और उसके बाद हुए संघर्षविराम जैसे गंभीर सवालों पर स्पष्टता लाएंगे। लेकिन, उनके भाषण में कई जरूरी सवाल अनुत्तरित रह गए। आइए, उन 15 अहम बातों पर नजर डालें, जो मोदी जी के संदेश में छूट गईं और जिनका जवाब देश जानना चाहता था।
आतंकवादियों का सच: पहलगाम हमले के आतंकवादी कौन थे? वे कहां से आए, कैसे घुसे, और कैसे निकल गए? क्या जांच में कुछ सामने आया? देश को इसकी साफ तस्वीर चाहिए थी।
सुरक्षा में चूक का जिम्मेदार कौन?: पर्यटकों से गुलज़ार पहलगाम से सुरक्षा हटाने का फैसला किसका था? यह निर्णय क्यों और कैसे लिया गया? इसकी जवाबदेही तय होनी चाहिए थी।
खुफिया और सुरक्षा विफलता: हमले से पहले खुफिया तंत्र क्यों नाकाम रहा? सुरक्षा व्यवस्था में कमी के लिए कौन जिम्मेदार है, और उन पर क्या कार्रवाई हुई?
माफी की गुंजाइश: इतनी बड़ी चूक के लिए देश से माफी मांगकर सरकार विश्वास बहाल कर सकती थी। लेकिन, यह मौका भी गंवाया गया।
प्राथमिकताओं पर सवाल: जब पहलगाम का मसला इतना गंभीर था, जैसा मोदी जी ने खुद कहा, तो वे चुनावी रैलियों और अडानी के कार्यक्रम में कैसे व्यस्त रहे? देश को इसका जवाब चाहिए।
सर्वदलीय बैठक से दूरी: संकट के समय सर्वदलीय बैठकों से दूरी क्यों? एकजुटता दिखाने का यह सुनहरा मौका क्यों छोड़ा गया?
हानि का हिसाब: हमले में कितने भारतीयों की जान गई? कितने घायल हुए? विवादास्पद सौदों वाले महंगे विमानों का क्या हुआ? सरकार की चुप्पी सवालों को और गहरा रही है।
आतंकवादियों पर आधा सच: मोदी जी ने 100 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया, लेकिन प्रमुख आतंकी अजहर मसूद के बच निकलने और उसके परिवार के मारे जाने की बात क्यों नहीं स्पष्ट की?
पाकिस्तान के प्रति नरमी?: इतने गले मिलने, तोहफे देने और हथियार खरीदने के बावजूद पाकिस्तान भारत के खिलाफ क्यों खड़ा रहा? इस नीति की असफलता पर क्या कहना है?
हमले और संघर्षविराम का उद्देश्य: हमले से भारत ने क्या हासिल किया? संघर्षविराम से क्या फायदा हुआ? देश को यह जानने का हक है।
अमेरिका की दखलंदाजी: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार दावा कर रहे हैं कि उन्होंने भारत-पाक के बीच सुलह कराई। इस भ्रामक प्रचार पर भारत की चुप्पी क्यों? क्या व्यापार के लालच में सुलह हुई?
कश्मीर नीति में बदलाव?: अगर कश्मीर पर भारत की विदेश नीति बदली है, तो देश को भरोसे में लेना चाहिए। क्या कश्मीर अब मध्यस्थता के लिए खुला है? ट्रंप की मध्यस्थता की बात पर भारत की स्थिति साफ क्यों नहीं की गई?
शहीदों के अपमान पर चुप्पी: भाषण में सिंदूर की दुहाई दी गई, लेकिन जिनका सिंदूर उजड़ा, उनके साथ मोदी समर्थकों की बदसलूकी पर एक शब्द क्यों नहीं? विदेश सचिव विक्रम मिसरी की ट्रोलिंग पर भी चुप्पी क्यों?
मीडिया की गैर-जिम्मेदारी: फर्जी खबरें फैलाने वाले और देश की किरकिरी कराने वाले न्यूज चैनलों और एंकरों को तमीज सिखाने की जरूरत थी। लेकिन, इस पर भी मौन रहा।
कश्मीर की जनता और हिंसा का जिक्र क्यों नहीं?: आतंकवाद के खिलाफ सड़कों पर उतरी कश्मीर की जनता और देश के अन्य हिस्सों में कश्मीरी छात्रों-नौजवानों पर हुई हिंसा का जिक्र तक नहीं हुआ। क्या यह देश के लिए अहम नहीं था?
प्रधानमंत्री का संदेश कई उम्मीदों को अधूरा छोड़ गया। ये 15 सवाल न सिर्फ देश के मन में हैं, बल्कि एक मजबूत, पारदर्शी और जवाबदेह नेतृत्व की जरूरत को भी रेखांकित करते हैं। जब तक इन सवालों के जवाब नहीं मिलते, देश का भरोसा अधूरा ही रहेगा। क्या अगली बार ये मुद्दे संबोधित होंगे? यह समय और सरकार के कदम ही बताएंगे।