कुश्ती के अखाड़े से लेकर जीवन के हर मोर्चे पर अपने अदम्य साहस, अनुशासन और प्रेरक व्यक्तित्व से लोगों के दिलों में अमिट छाप छोड़ने वाले अन्तरराष्ट्रीय कुश्ती उस्ताद बाबू महादेव सिंह परियावॉं अब हमारे बीच नहीं रहे। उनके निधन की खबर ने न केवल जौनपुर, बल्कि पूरे देश के कुश्ती प्रेमियों को शोक में डुबो दिया है।
बाबू महादेव सिंह केवल एक पहलवान नहीं थे, वह एक विचार थे, एक परंपरा थे और एक प्रेरणा थे। उनकी शारीरिक बनावट जितनी प्रभावशाली थी, उनका आत्मबल और संयम भी उतना ही प्रखर था। उन्होंने अखाड़े में विदेशी पहलवानों को न केवल चुनौती दी, बल्कि ईरान से आए पहलवानों को भी कुश्ती के गुर सिखाकर भारत की मिट्टी की ताकत का अहसास कराया।
ताकत के साथ तकनीक का अनुपम
उनकी कुश्ती शैली में ताकत के साथ-साथ तकनीक का अनुपम समन्वय दिखाई देता था। वह कुश्ती को केवल एक खेल नहीं, बल्कि एक साधना मानते थे। उनके जीवन की अनगिनत कहानियाँ आज भी गाँव-गाँव में बच्चों, युवाओं और बुज़ुर्गों को प्रेरणा देती हैं कि कैसे अनुशासन, समर्पण और परिश्रम से एक साधारण ग्रामीण युवक विश्वपटल पर कुश्ती का परचम लहरा सकता है।
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कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष फैसल हसन ने कहा कि बाबू महादेव सिंह का हमारे परिवार से गहरा आत्मीय रिश्ता था। उनका जाना हमारे लिए केवल एक पारिवारिक व्यक्ति का बिछड़ना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। उन्होंने न केवल अखाड़े में बल का प्रदर्शन किया, बल्कि जीवन में संस्कार और सेवा का उदाहरण भी प्रस्तुत किया।
जिले के पहलवानों ने दी श्रद्धांजलि
जिले के पहलवानों ने कहा कि आज जब हम उन्हें अंतिम विदाई दे रहे हैं, तो यह वादा करते हैं कि उनकी विरासत को जीवित रखने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उनके नाम पर कुश्ती प्रतियोगिताएं, प्रशिक्षण शिविर और युवा प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने के प्रयास लगातार चलते रहेंगे।
बाबू महादेव सिंह जी को शत-शत नमन, आपकी यादें, आपका आदर्श और आपकी शिक्षा सदैव हमारे साथ रहेंगी, विनम्र श्रद्धांजलि।