Heeramandi : तवायफ़ों का कितना सच दिखा पाए हैं संजय लीला भंसाली?
हीरामंडी! जहां की तवायफों के दीवाने मुगल नवाब दूर-दूर से अदाकारों की फनकार देखने आते थे. हीरामंडी की सबसे खूबसूरत तवायफ के तो पाकिस्तानी फिल्म डायरेक्टर ख्वाजा मजहर भी दीवाने हो गए.
वो एक ऐसे शख़्स के तौर पर उभरे हैं जो छोटी चीज़ों से संतुष्ट नहीं हैं. वो वैभव और भव्यता के समर्थक हैं, जो अपनी फ़िल्मों में जुनून की हद तक लाइट से लेकर तमाम दूसरी बारीकियों पर ध्यान देते हैं.
उनकी हालिया सिरीज़ 'हीरामंडी: द डायमंड बाज़ार' इस नेटफ़्लिक्स पर रिलीज़ हो चुकी है.
इस सिरीज़ को अपनी वैराइटी के लिए पसंद किया जा रहा है. आठ एपिसोड में बंटी सिरीज़ में जो चमक-दमक और भव्यता है उससे दर्शक मंत्रमुग्ध हैं. हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री के कुछ मशहूर सितारों के साथ बनाई गई इस सिरीज़ में भंसाली लाहौर (भारत विभाजन से पहले) के एक समय के चर्चित रेडलाइट एरिया की कहानी दिखाते हैं.
शानदार ढंग से बनाई गई ये सिरीज़ सिर्फ अपनी भव्यता की वजह से सिने प्रेमियों को नहीं लुभा रही है बल्कि ओटीटी पर अब तक की सबसे महंगी सिरीज़ इसे बताया जा रहा है. इस सिरीज़ ने एक बहस खड़ी कर दी है. और वो ये कि आख़िर तवायफ़ें कौन थीं और उनकी असल भूमिका क्या थी?
लेकिन सबसे पहले बात करते हैं आठ घंटे की इस लंबी सिरीज़ की.
संजय लीला भंसाली का ज़ोर इस बात पर नहीं है कि लाहौर का रेड लाइट एरिया हीरामंडी उस दौर में कैसा दिखता था. इतिहासकार और संस्कृति विशेषज्ञ भी ये नहीं मानते हैं कि अपने उरूज के वक़्त भी हीरामंडी ऐसी रही होगी जैसा कि सिरीज़ में दिखाया गया है.
भंसाली ने जिस शानदार शैली में आज़ादी से पहले की तवायफ़ों की ज़िंदगी में प्रेम और धोखे की कहानियां दिखाई है वो सब पुराने लाहौर के रेडलाइट एरिया में रहने वाली महिलाओं के जीवन में घटित होती हैं.
ये उनकी ज़िंदगी, संघर्ष और उनके रिश्तों की कहानी कहती है. और यह कहानियां एक शाही अंदाज़ में कही जाती हैं.
दिग्गज अभिनेत्री दीप्ति नवल कहती हैं, ''भंसाली की अद्भुत और आलीशान कहानी कहने की शैली के ज़रिये मैंने उन शानदार महिलाओं की ज़िंदगी और अतीत का अनुभव लिया और इसे पसंद किया. सभी अभिनेत्रियां ज़बरदस्त हैं.''
What's Your Reaction?